165 साल बाद श्राद्ध पितृपक्ष के एक माह बाद शुरू होगा नवरात्र

17 सितंबर को आखरी श्राद्ध/पितृपक्ष लेकिन एक महीने बाद 17 अक्टूबर से नवरात्र

संकष्टी चतुर्थी व्रत व शिक्षक दिवस भी श्राद्ध में

क्या होता है अधिमास!

(संवाददाता NewsExpress18)

देहरादून। श्राद्ध/पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से माता के नवरात्र का आरंभ होते हैं और 10वें दिन विजय दशमी यानी दशहरा होता है। पितृ अमावस्‍या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ होता है। लेकिन, इस बार श्राद्ध खत्म होते ही अधिमास लग जायेगा।

संकष्टी चतुर्थी व्रत भी श्राद्ध में-
5 सितंबर शनिवार के दिन संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी से आशय संकट को रहने वाली चतुर्थी तिथि से है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि संकष्टी के दिन गणपति की पूजा-आराधना करने से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं।

शिक्षक दिवस भी श्राद्ध में-
5 सितंबर को सिक्षक दिवस भी मनाया जाएगा। हर साल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति में सम्पूर्ण भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे एक महान शिक्षक होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपती तथा दूसरे राष्ट्रपति थे।

श्राद्ध 2 सितंबर से 17 सितंबर तक-

पितृपक्ष 2020, 2 सितंबर से शुरू होकर 17 सिंतबर तक रहेगा। सभी श्राद्ध इस दौरान किए जाएंगे और पितरों को तर्पण भी किया जाएगा। अपने-अपने पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान करेंगे, ताकि पितरों का आशीर्वाद उन पर बना रहे।

एक महीने बाद 17 अक्टूबर से नवरात्र-

इस साल 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिमास शुरू हो जायेगा, जो 16 अक्तूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्तूबर से नवरात्र व्रत रखे जायेंगे। नवरात्रि के बाद दसवीं को दशहरा होगा।

इसबार 2020 में अधिमास लगने से नवरात्र और श्राद्ध/पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ गया है। अश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना, ऐसा संयोग 165 साल बाद हो रहा है।

चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा। लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। 165 साल बाद लीप इयर और अधिमास दोनों ही एक साल में ही हो रहे हैं।

क्या होता है अधिमास-

एक सूर्य वर्ष 365-1/4 दिन का होता है। वहीं एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिमास का नाम दिया गया है।

इस दौरान चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस समय काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व रहेगा। इस दौरान देवता सो जाते हैं और देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।

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